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न जाने क्यों,हमारा मुकद्दर खफ़ा हो गया है

न जाने क्यों,हमारा मुकद्दर खफ़ा हो गया है

तर्क वितर्क की छाई है घनघोर छाया
जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रश्न ही प्रश्न है
आकांक्षाओं को कोई पूर्ण न कर सका
न जाने क्यों, हमारा मुकद्दर खफा हो गया है।
आज हम व्यस्त है और उलझें हुए भी है
पर अंदर ही अंदर रोता है दिल
वक्त का दौर यूं ही गुजर जायेगा
न जाने क्यों, हमारा मुकद्दर खफा हो गया है।
ये जिंदगी बता तू,इतनी नाराज क्यों है
मेरी कोई भी तमन्ना पूरी न हुई
कुछ न हासिल हो पाया तेरे सफर में ऐ जिंदगी
न जाने क्यों, हमारा मुकद्दर खफा हो गया है।
आज अपनों ने ही जला दी हस्ती हमारी
वरना जमाने में हमारा भी नाम था
उम्मींद न थी कभी ऐसे दिनों की
न जाने क्यों, हमारा मुकद्दर खफा हो गया है।
इस नश्वर दुनिया में
किसी का कोई अस्तित्व स्थिर नही है
यहां हर पल कितने ही लोग आते है
और कितने ही लोग जा रहें है
दर्द ए दिल की दास्तान किसी से क्या बयां करूं
न जाने क्यों, हमारा मुकद्दर खफा हो गया है।

नूतन लाल साहू

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5 Comments

Sushi saxena

04-Jun-2023 02:50 PM

Nice one

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Harsh jain

04-Jun-2023 01:52 PM

Nice

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बढ़िया लिखा आपने

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